डॉ. अंबेडकर के अंतर्गत सामाजिक सुधार एवं परिवर्तन के पक्ष में सुझाव

 सामाजिक सुधार एवं परिवर्तन:- डॉ. अंबेडकर

डॉ. अशोक कुमार पाण्डेय
 समाज परिवर्तन की कई विधियां हो सकती है। समाज में कुछ परिवर्तन विकासात्मक होते हैं। विकासवादी विधि वैज्ञानिक साधनों के आधार पर चलती है।इस क्रम के अंतर्गत व्यवस्थित सामाजिक जीवन के सभी कार्य सुचारू रूप से चलते रहते हैं।विभिन्न संस्थाओं का विकास धीरे-धीरे होता रहता है। विकासात्मक विधि के अतिरिक्त क्रांतिकारी विधि भी होती है, जिसके द्वारा संघर्ष और मार-काट से समाज में परिवर्तन लाया जाता है। डॉ. अंबेडकर कभी भी हिंसात्मक विधि के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार, नवीन समाज में हिंसा, घृणा और वैमनस्य का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। आधुनिक समय में हिंसा से परिवर्तन लाना बौद्धिक दृष्टि के विपरीत है।शक्ति और अनावश्यक दबाव का प्रयोग करना धर्म के विरुद्ध है शांतिमय ढंग ही सबसे उत्तम पद्धति है।

डॉ. अंबेडकर के अंतर्गत सामाजिक सुधार एवं परिवर्तन के पक्ष में सुझाव

                        अंबेडकर स्वतंत्र भारत के विधान – विधाता थे।उन्होंने सामाजिक सुधार एवं परिवर्तन के लिए हिंसा और बल का प्रयोग नहीं किया।दिन- हीनों के अधिकारों की रक्षा उन्होंने शांतिमय पद्धति से ही की। उनके जीवन के निम्नलिखित बातें विचारणीय  हैं। :-
(1) भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व डॉ. अंबेडकर ने परी गणित जातियों के हितार्थ सार्वजनिक अधिकारों के लिए एक बृहत सामाजिक आंदोलन किया। इस आंदोलन से सामाजिक खलबली मची। जिसका परिणाम परिगणित जातियों पर आक्रमण और दबाव दिया गया। परंतु डॉ. अंबेडकर पर उसका प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि उनकी मांगे उचित थी। नैतिक एवं कानूनी आधार उनका दृढ़ था। उन्होंने हिंसात्मक ढंग नहीं अपनाया। उनकी मांगे बिल्कुल प्रजातांत्रिय एवं मानववादी थी।उनकी कार्य – विधि पूर्ण रूप से शांतिमय थी। अंत में उनकी मांगें मान ली गई।
(2) डॉ. अंबेडकर ने सुझाव दिया कि समाज – सुधारको को स्थूल असमताओं  के विरुद्ध जनता – जनार्दन की भावनाओं को जागृत करना चाहिए। उन्हें कुछ ऐसे कार्यालय की स्थापना करनी चाहिए,जिसके द्वारा छुआछूत एवं अन्य सामाजिक अत्याचारों की जांच की जा सके। इन कार्यालयों के सुझाव पर समाज के अमीर वर्ग गरीब लोगों को अपने कारखानों व दफ्तरों में कार्य करने का अवसर दें। उन्हें अपने घरों में पारिवारिक नौकरों के रूप में रखें। डॉ. अंबेडकर का यह विश्वास बिल्कुल ठीक था कि व्यक्तिगत कारखाने, मित्रों एवं अन्य संस्थाएं,अछूत तथा शूद्रों की हालत सुधारने में बहुत योग दे सकती हैं। उन्हें उनकी योग्यतानुसार कार्य देकर उत्साहित किया जा सकता है। उनका यह सुझाव मानव के प्रति भक्ति और प्रेम का उदगार था।
(3) डॉ. अंबेडकर ने विभिन्न वर्गों को परिवारिक स्तर पर मिलकर बैठने – उठने का महत्वपूर्ण सुझाव दिया। वह चाहते थे कि अछूत एवं तथाकथित उच्च वर्ग की हिंदू साथ – साथ मिलकर रहे।विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों में समता एवं स्वतंत्रतापूर्वक भाग लेने से ही घृणा एवं छुआछूत का अंत हो सकता है।एक दूसरे के समीप आने से वे अपनी समस्याओं को ठीक – ठीक तरह से समझ सकते हैं और उनका न्यायोचित हल भी निकाल सकते हैं। यह कार्य अछूतो को घरेलू नौकर अथवा अतिथि बनाएं बिना संभव नहीं हो सकता।सभी उच्च वर्ग कहे जानेवालों को ऐसे कार्यों में सहायता करनी चाहिए, ताकि सामाजिक विषमता दूर हो। डॉ. अंबेडकर ने कहा कि  “यह उत्साहित मिलन सामान्यतः सब को एक दूसरे से परिचित करायेगा और उस एकता का मार्ग प्रदर्शित करेगा जिसके लिए हम सब लोग प्रयत्न कर रहे हैं।
(4) जातिवाद एवं छुआछूत का अंत करने के लिए डॉ. अंबेडकर ने कहा कि हमें कार्यकर्ताओं की ऐसी फौज बनानी चाहिए जो मन एवं वचन से कार्य कर सकें। उन्होंने केवल उन्हीं कार्यकर्ताओं को एकत्रित करने का सुझाव दिया, जो समाज – सुधार को प्रिय एवं पवित्र कार्य मानते हो। डॉ. अंबेडकर ने टॉलस्टॉय के शब्दों को दोहराया कि”केवल जो प्रेम करते हैं, वही सेवा कर सकते हैं।”इसलिए किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए मानव भक्ति की अति आवश्यकता है यह कार्य ‘एक काम, एक लगन के सिद्धांत के बिना संभव नहीं हो सकता।भक्ति – भाव मानव प्रेम अथवा कानून से ही जातिवाद एवं छुआछूत का अंत हो सकता है।
                                    उपर्युक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि डॉ. अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन शांति एवं सुझाव के द्वारा चाहते थे, न की शक्ति एवं हिंसा से। उन्होंने कभी भी यह दावा नहीं किया कि सामाजिक एकता एवं सामंजस्य हिंसात्मक विधियों से संभव हो सकता है। प्रेम, शांति एवं सुझाव उत्तम उपाय हैं। उन्होंने बताया कि”छूत एवं अछूत कानून के द्वारा नहीं मिल सकते, निश्चय ही किसी चुनाव संहिता,जो संयुक्त निर्वाचन के स्थान पर पृथक – निर्वाचन को चाहती हो, से भी नहीं। प्रेम ही उन्हें एक कर सकता है।
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