वर्ण किसे कहते हैं

वर्ण किसे कहते हैं

भाषा के द्वारा मनुष्य अपने भाव-विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करता है तथा दूसरों के भावों-विचारों को समझता है। अपनी भाषा को सुरक्षित रखने और काल की सीमा से निकालकर अमर बनाने की ओर मनीषियों का ध्यान गया। वर्षों बाद मनीषियों ने यह अनुभव किया कि उनकी भाषा में जो ध्वनियाँ प्रयुक्त हो रही हैं, उनकी संख्या निश्चित है और इन ध्वनियों के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है। बाद में इन्हीं उच्चारित ध्वनियों के लिए लिपि में अलग-अलग चिह्न बना लिए गए, जिन्हें वर्ण कहते हैं।

वर्णमाला किसे कहते हैं

वर्णों के समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में वर्णों की संख्या 45 है। संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर ॠ है। इसे भी सम्मिलित कर लेने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है।

इसके अतिरिक्त, हिन्दी में अं, इ इ और अंग्रेज़ी से आगत ओं ध्वनियाँ प्रचलित हैं। ॐ अं से भिन्न है, इ ड से, इढ से भिन्न है, इसी प्रकार ओं आ से भिन्न ध्वनि है। वास्तव में इन ध्वनियों (अँ, इ, इ, ऑ) को भी हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनको भी सम्मिलित कर लेने पर हिन्दी में वर्णों की संख्या 50 हो जाती है। हिन्दी वर्णमाला दो भागों में विभक्त है— स्वर और व्यंजन। –

स्वर वर्ण किसे कहते हैं

जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं। अर्थात, हम बिना किसी अन्य स्वर का प्रयोग किये बिना स्वर का उच्चारण कर सकते हैं. हिंदी व्याकरण में कुल 11 स्वर होते हैं.

स्वर: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ

इनके आलावा भी कुछ और होते है जैसे की अं, अः, ङ्, ञ्.

स्वर तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं

1. मूल स्वरवे स्वर जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, अर्थात् जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है, मूल स्वर या हस्व स्वर कहलाते हैं जैसे-अ, इ, उ, ऋ

2. सन्धि स्वर-  वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, सन्धि स्वर कहलाते है। ये दो प्रकार के होते हैं

(i) दीर्घ स्वर वे स्वर जो सजातीय स्वरों (एक ही स्थान से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, दीर्घ स्वर कहलाते हैं; जैसे-

अ अ = आ

इ+इ = ई

उ+उ = ऊ

(ii) संयुक्त स्वर के स्वर जो विजातीय स्वरों (विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, संयुक्त स्वर कहलाते है; जैसे-

37+7=1

अ ए ऐ

अउ ओ

अओ ओ

3. प्लुत स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है, पलुत स्वर कहलाते हैं; जैसे- ‘3’ किसी को पुकारने या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग करते हैं; जैसे- राऽऽऽऽम

स्वरों का उच्चारण

उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्न हैं

“जीभ”

1. अग्र स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग ऊपर उठता है, अग्र स्वर कहलाते हैं; जैसे- इ. ई. ए. ऐ

2. मध्य स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिहा समान अवस्था में रहती है,

मध्य स्वर कहलाते हैं;

जैसे- ‘अ’ 3. पश्च स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग ऊपर उठता है, पश्च स्वर कहलाते हैं:

जैसे- आ, उ, ओ, औ ।

इसके अतिरिक्त अं (“), अं (‘), और अ: (:) ध्वनियाँ हैं। ये न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने इन्हें अयोगवाह कहा है, क्योंकि ये बिना किसी से योग किए ही अर्थ वहन करते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले निर्धारित किया गया है।

व्यंजन

जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से नहीं निकलती, वरन् उसमें पूर्ण या अपूर्ण अवरोध होता है, व्यंजन कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, वे ध्वनियाँ जो बिना स्वरों की सहायता लिए उच्चारित नहीं हो सकती हैं, व्यंजन कहलाती हैं; जैसे-क= क् + आ

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