जानिए किस नक्षत्र के लिए किस वृक्ष की पूजा तथा वृक्षारोपण करना चाहिए।

jyotish shastra: किस नक्षत्र के लिए किस वृक्ष की पूजा तथा वृक्षारोपण करना चाहिए।

प्राचीन ज्योतिशास्त्र के अनुसार प्रत्येक जातक जिस भी राशि में जन्म लेता है उस जन्म समय पर उसका एक निर्धारित नक्षत्र भी होता है। इस प्रकार प्रत्येक जातक का एक जन्म नक्षत्र होता है। नक्षत्र का चरण कोई भी हो सकता है। किसी भी व्यक्ति के ग्रह गोचर ऋणात्मक होने की स्थिति में उसके शरीर में धनात्मक ऊर्जा बढ़ाने हेतु ज्योतिष विज्ञान में अनेक उपायों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इन्हीं उपायों के अन्तर्गत नक्षत्रों को वृक्षों से सम्बन्धित करते हुए अनेक सरल और प्रभावी प्रयोगों का वर्णन किया गया है जिन्हें सम्पन्न करके कोई भी जातक पर्याप्त लाभान्वित हो सकता है और अपने प्रतिकूल समय को सामान्य ढंग से पार कर जाता है। यही नहीं इन प्रयोगों को हमेशा भी सम्पन्न करना हितकर ही है।

हिंदू पंचांग के अनुसार नक्षत्र कितने होते हैं ?

हम सभी परिचित हैं कि कुल नक्षत्र 27 हैं। अभिजित को इस संख्या में शामिल नहीं किया गया है। ये नक्षत्र हैं- 1. अश्विनी, 2. भरणी, 3 कृतिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु 8. पुष्य, 9. आश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तरा फाल्गुनी, 13 हस्त, 14. चित्रा, 15 स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढ़ा, 22. श्रवण, 23 धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वा भाद्रपद, 26. उत्तरा भाद्रपद 27. रेवती। अब इन नक्षत्रों को वृक्ष से सम्बन्धित करते हुए जो प्रयोग हैं अर्थात जो लाभ मिलते हैं उनका क्रमशः विवरण दिया जा रहा है। इसका लाभ आप भी उठायें।

नक्षत्र के अनुसार किस वृक्ष की पूजा तथा वृक्षारोपण करना चाहिए ?

(1) अश्विनी – इस नक्षत्र का वृक्ष ‘कुचला’ नाम का है। अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक यदि कुचला वृक्ष की जड़ में नित्य जलार्पण करे व इस वृक्ष की 11 बार परिक्रमा करे एवं इसका स्पर्श करे तो निश्चय ही उसके मनोनुकूल कार्य होने लगते हैं, उसकी ग्रह बाधा दूर होती है।

(2) भरणी- इस नक्षत्र का वृक्ष ‘आँवला’ है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला आँवले के वृक्ष की कुंकुम अक्षत से पूजा करे एवं भरणी नक्षत्र के दिन इसकी छाया के नीचे बैठकर अपने ईष्ट का ध्यान करे तो निश्चय ही उसे धनात्मक ऊर्जा मिलती है व अपने “ईष्ट” के दर्शन होते हैं।

(3) कृतिका – शास्त्रों में इस नक्षत्र को ‘गूलर के वृक्ष से जोड़ा गया है। जो जातक कृत्तिका नक्षत्र में जन्मा हो उसे प्रत्येक शुक्रवार के दिन इस वृक्ष की 7 परिक्रमा करनी चाहिये। इसी प्रकार इस वृक्ष की जड़ में जल व चावल अर्पण करना भी लाभकारी होता है।

(4) रोहिणी – इस नक्षत्र का वृक्ष जामुन व अमलतास’ है। रोहिणी नक्षत्र में जन्में जातक को जामुन व अमलतास’ के वृक्ष में जल चढ़ाना, उसकी परिक्रमा करना तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन उसकी जड़ में थोड़ा सा शक्कर एवं आटा डालना शुभत्व देता है।

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(5) मृगशिरा – इस नक्षत्र का शुभ वृक्ष कत्था (खेर) है। मृगशिरा नक्षत्र में जन्में व्यक्ति के लिये कत्थे के वृक्ष में जल चढ़ाना, प्रति बुधवार उसकी पूजा करना तथा इस के वृक्ष की एक छोटी-सी टहनी को अपनी जेब में रखना शुभ होता है। ध्यान रखें इस वृक्ष को घर में लगाना शुभ नहीं होता है।

(6) आर्द्रा – इसका वृक्ष ‘कृष्ण कमल’ है। इस वृक्ष की नित्य परिक्रमा करने से तथा इस वृक्ष की जड़ में नित्य एक दूर्वा चढ़ाने से कार्य सिद्ध होता है।

(7) पुनर्वसु – इसका आधार वृक्ष ‘बबूल अथवा बांस’ का है। पुनर्वसु में जन्में व्यक्ति को बांस या बबूल का पुष्प व कुछ पत्तियों, टहनी के टुकड़े को सदैव पास में रखना हितकारी है।

( 8 ) पुष्य – इस नक्षत्र का प्रभावी वृक्ष ‘पीपल’ है। इस वृक्ष के जातक को शुभत्व एवं लाभ हेतु पीपल में जलार्पण करना चाहिये, इसकी परिक्रमा करनी चाहिये, शनिवार को छोड़कर नित्य इसका स्पर्श करना चाहिये तथा इसकी जड़ में थोड़ी-सी शक्कर नित्य अर्पित करना चाहिये।

(9) आश्लेषा – इस नक्षत्र का प्रभावी वृक्ष ‘नाग केसर व चम्पा’ का होता है। इस नक्षत्र में जन्में जातक को इस वृक्ष के नीचे प्रतिदिन कुछ समय तक बैठना, इसका नित्य स्पर्श करना तथा इस वृक्ष के फल को तिजोरी में रखना लाभकारी होता है।

(10) मघा – इस नक्षत्र का शुभ वृक्ष ‘वट’ अर्थात् बरगद का है। इस नक्षत्र वाले जातक को गुरू पुष्य योग में इस वृक्ष की जमीन को ठीक स्पर्श करने वाली जटा के थोड़े से टुकड़े को तोड़ लेना चाहिये तथा उसे अपनी जेब में हमेशा रखना चाहिये किन्तु रात्रिकाल में इसे पास में नहीं रखना चाहिये। इसी प्रकार उसके लिये नित्य वट की परिक्रमा करना भी हितकारी है।

(11) पूर्वा फाल्गुनी – इस नक्षत्र वाले जातकों के लिये शुभ वृक्ष अशोक व पलाश का है। ऐसे जातकों को सोमवार के दिन इन वृक्षों के 7 पत्तों को तोड़कर अपनी तिजोरी में किसी पुस्तक में छिपाकर रख लेना चाहिये तथा प्रत्येक पूर्वाफालगुनी नक्षत्र पड़े, उस दिन इस वृक्ष की छाँव तले बैठना एवं इसकी 7 परिक्रमा करनी चाहिये।

( 12 ) उत्तरा फाल्गुनी- इस नक्षत्र का अधिपति वृक्ष खेजड़ी (शमी) व पाकड़’ का है। सम्बन्धित जातक को इस वृक्ष की जड़ में तिल्ली एवं मिष्ठान चढ़ाना लाभकारी है।

( 13 ) हस्त – इस नक्षत्र का पौधा ‘जूही व रीठा’ का है। इस नक्षत्र वाले जातक को जूही या रीठा के पौधे में जलार्पण करना तथा उसकी 9 पत्तियों को शुभ मुहूर्त में निकाल कर अपने घर में सहेज कर रखना हितकारी है।

(14 व 15) चित्रा एवं मूल-इन नक्षत्रों से ‘बिल्व वृक्ष का सम्बन्ध जोड़ा गया है। इस नक्षत्र के जातक को नित्य बिल्व वृक्ष की परिक्रमा करना, इस पर जल चढ़ाना तथा इसके पत्रों को शिवजी पर चढ़ाना शुभ है। इस वृक्ष का घर में उत्तर दिशा में होना शुभ है।

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( 16 ) स्वाती – इस नक्षत्र का अधिपति वृक्ष ‘अर्जुन’ का है। सम्बन्धित जातक को अर्जुन वृक्ष का नित्य स्पर्श करना तथा इसकी बड़ी छाल के एक टुकड़े को जेब में रखना लाभकारी है।

(17 व 18) विशाखा एवं अनुराधा- इन दोनों नक्षत्रों का अधिकारी वृक्ष मौलश्री व नागकेशर’ है। घर में इस वृक्ष को लगाकर नित्य उसकी जड़ में दुग्धार्पण करना शुभ है।

( 19 ) ज्येष्ठा – इस नक्षत्र का वृक्ष ‘नीम व चीड़’ है। इस नक्षत्र में जन्में जातक को नीम अथवा चीड़ का वृक्ष नित्य स्पर्श करना, उसकी कोपल का नित्य सेवन करना तथा इस वृक्ष की जड़ में रेवड़ी अथवा तिल एवं शक्कर डालना हितकर है।

(20 व 21) पूर्वाषाढ़ा एवं श्रवण- इन नक्षत्रों का प्रतिनिधि वृक्ष अशोक व आक’ है। इस नक्षत्र वाले जातकों को अशोक व श्वेतार्क का नित्य पूजन करना चाहिये। यही नहीं प्रत्येक बुधवार को इस वृक्ष की जड़ में हल्दी एवं जल चढ़ाना और भी लाभदायक है। अशोक या आर्क के पौधे की जड़ को पूर्व निमंत्रित कर गुरुपुष्प के दिन निकालकर ले आवें। इसे पूजन में रखें। सर्वस्व शुभ होता है।

( 22 ) उत्तराषाढ़ा – इस नक्षत्र का सम्बन्ध कटहल के वृक्ष से है। इस नक्षत्र के जातक को इस वृक्ष की परिक्रमा करना, इसके नीचे बैठकर कुछ समय तक अपने इष्ट देव का स्मरण करना हितकर है।

( 23 ) धनिष्ठा – इस नक्षत्र का प्रतिनिधि वृक्ष शमी या नारियल’ है। सम्बन्धित व्यक्ति को अपने घर में एक शमी अथवा नारियल वृक्ष लगाकर उसका पूजन हितकर है।

( 24 ) शतभिषा – इस नक्षत्र का वृक्ष ‘कदम्ब’ है। इस नक्षत्र के जातक को अपने शयन कक्ष में एक कदम्ब का फूल या टहनी रखनी चाहिये। इसी प्रकार उसे शतभिषा नक्षत्र जिस दिन पड़े, उस दिन कदम्ब वृक्ष का स्पर्श कर उसके समक्ष अपनी समस्या कहना चाहिये। ऐसा करने से शुभत्व के दर्शन होते हैं।

(25) पूर्वाभाद्रपद – इस नक्षत्र का प्रतिनिधि वृक्ष ‘आम’ है। इस वृक्ष की नित्य जल एवं अक्षत कुंकुम से पूजन करना हितकारी होता है।

(26) उत्तरा भाद्रपद – इस नक्षत्र का पौधा नीम व मेहंदी है। इस नक्षत्र वाले जातक को अपने शयन अथवा अध्ययन कक्ष में नीम या मेहंदी के फलों को रखना चाहिये। इसी प्रकार इसकी 4-5 पत्तियों को स्नान के जल में डालकर जिस दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र पड़े, उस दिन उस जल से स्नान करना शुभ होता है।

( 27 ) रेवती – इसका प्रतिनिधि वृक्ष ‘महुआ व बेर है। सम्बन्धित जातक को पूर्णिमा के दिन महुआ व बेर के वृक्ष के नीचे एक इमरती रखना शुभ होता है। इस वृक्ष को घर की सीमा के बाहर होना शुभ होता है।

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