disadvantages of taking of tea

जानें चाय का इतिहास जिसका सेवन आप रोज़ करते है

जानें चाय का इतिहास जिसका सेवन आप रोज़ करते है !

disadvantages of taking of tea

दुनिया में पानी के बाद यदि कोई चीज सबसे अधिक पी जानेवाली है तो वह संभवत: चाय ही है। सुबह-सुबह चाय न मिले तो दिन का जायका ही नहीं बनता। आप रोज ही कई कप चाय पी जाते होंगे और चाय की प्‍यालियां पकड़े कई तरह की चर्चा करते होंगे। लेकिन क्‍या आप ने कभी चाय की चर्चा की है…। की है तो अच्‍छा है, नहीं की है तो हम हैं ना। तो हम ले चलते हैं आपको इंटरनेट पर मौजूद चाय की जायकेदार दुनिया में।

सफर की शुरुआत में चलते हैं धान के देश में, जहां जी.के. अवधिया जी बता रहे हैं, ‘’चाय के पेड़ की उम्र लगभग सौ वर्ष होती है किन्तु अधिक उम्र के चाय पेड़ों की पत्तियों के स्वाद में कड़ुआपन आ जाने के कारण प्रायः चाय बागानों में पचास साठ वर्ष बाद ही पुराने पेड़ों को उखाड़ कर नये पेड़ लगा दिये जाते हैं। चाय के पेड़ों की कटिंग करके उसकी ऊंचाई को नहीं बढ़ने दिया जाता ताकि पत्तियों को सुविधापूर्वक तोड़ा जा सके। यदि कटिंग न किया जावे तो चाय के पेड़ भी बहुत ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं।‘’ अवधिया जी को चाय के पेड़ के विषय में उक्‍त जानकारी उनके जलपाईगुड़ी प्रवास के दौरान वहां के लोगों से मिली थी।

चाय कितने प्रकार की होती है

मोटे तौर पर चाय दो तरह की होती है : प्रोसेस्ड या सीटीसी (कट, टीयर ऐंड कर्ल) और ग्रीन टी (नैचरल टी)।
सीटीसी टी (आम चाय) : यह विभिन्न ब्रैंड्स के तहत बिकने वाली दानेदार चाय होती है, जो आमतौर पर घर, रेस्तरां और होटेल आदि में इस्तेमाल की जाती है। इसमें पत्तों को तोड़कर कर्ल किया जाता है। फिर सुखाकर दानों का रूप दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव आते हैं। इससे चाय में टेस्ट और महक बढ़ जाती है। लेकिन यह ग्रीन टी जितनी नैचरल नहीं बचती और न ही उतनी फायदेमंद।
ग्रीन टी: इसे प्रोसेस्ड नहीं किया जाता। यह चाय के पौधे के ऊपर के कच्चे पत्ते से बनती है। सीधे पत्तों को तोड़कर भी चाय बना सकते हैं। इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं। ग्रीन टी काफी फायदेमंद होती है, खासकर अगर बिना दूध और चीनी पी जाए। इसमें कैलरी भी नहीं होतीं। इसी ग्रीन टी से हर्बल व ऑर्गेनिक आदि चाय तैयार की जाती है। ऑर्गेनिक इंडिया, ट्विनिंग्स इंडिया, लिप्टन कुछ जाने-माने नाम हैं, जो ग्रीन टी मुहैया कराते हैं।‘’

चाय पिने के फायदे :

– चाय में कैफीन और टैनिन होते हैं, जो स्टीमुलेटर होते हैं। इनसे शरीर में फुर्ती का अहसास होता है।

– चाय में मौजूद एल-थियेनाइन नामक अमीनो-एसिड दिमाग को ज्यादा अलर्ट लेकिन शांत रखता है।

– चाय में एंटीजन होते हैं, जो इसे एंटी-बैक्टीरियल क्षमता प्रदान करते हैं।

– इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कई बीमारियों से बचाव करते हैं।

– एंटी-एजिंग गुणों की वजह से चाय बुढ़ापे की रफ्तार को कम करती है और शरीर को उम्र के साथ होनेवाले नुकसान को कम करती है।

– चाय में फ्लोराइड होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और दांतों में कीड़ा लगने से रोकता है।

चाय पिने के नुकसान

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– दिन भर में तीन कप से ज्यादा पीने से एसिडिटी हो सकती है।
– आयरन एब्जॉर्ब करने की शरीर की क्षमता को कम कर देती है। ज्यादा चाय पीने वालों को अक्सर Anemia की शिकायत रहती है।
– कैफीन होने के कारण चाय पीने की लत लग सकती है।
– ज्यादा पीने से खुश्की आ सकती है।
– पाचन में दिक्कत हो सकती है।
– देर रात पीने से नींद न आने की समस्या हो सकती है।

चाय या कॉफी पीनें से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं।

 ताजा हुए सर्वे में चाय-कॉफी पर किए गए प्रयोगों में इसके कुछ खास तथ्य सामने आए हैं। आइए जानें चाय-कॉफी को पीनें से फायदे के साथ-साथ क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं।
– चाय-कॉफी में टेनिन नाम का 18 प्रतिशत पॉइजन रूपी तत्व होता है, जो पेट में छाले पैदा करता है।
– चाय-कॉफी में 3 प्रतिशत थिन होता है, जिससे गले और मुह में खुश्की चढ़ती है तथा यह फेफड़ों और सिर में भारीपन पैदा करता है।
– ये तो सब जानते हैं की चाय-कॉफी में कैफीन होता है। इसकी मात्रा 2.75 प्रतिशत होती है, जो शरीर में एसिड बनाने का काम करती है। इससे किडनी पर असर होता है और किडनी फंैक्षन कमजोर होता है।
– जांच से पता चला है कि चाय-कॉफी में वॉलाटाइल नामक केमिकल होता है। ये आंतो को कमजारे बनाता है। इससे आंतों के ऊपर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
– चाय-कॉफी का अधिक सेवन करने वालों को एसिडिटी की परेशानी सबसे ज्यादा होती है। क्योंकि इनमें कार्बोनिक अम्ल होता है जो शरीर में एसिडिटी के लेवल को तेज करता है।
– कुछ लोग ऎसा मानते हैं कि खाने के बाद एक कप चाय-कॉफी पीने से खाना पच जाता है लेकिन ये एक मिथ्थ है। चाय-कॉफी में पैमिन नामक अम्ल पाया जाता है और इससेे पाचनशक्ति कमजोर होती है।
– प्रयोंगों से ये भी पता चला है कि चाय-कॉफी में भरपूर मात्रा में एरोमोलीक नामक अम्ल पाया जाता है और इसका असर आंतडियों पर विपरीत पड़ता है। इससे आंते कमजोर होती है। इनका शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
– चाय-कॉफी में सबसे ज्यादा मात्रा में साइनोजन होता है और निंद न आने की बीमारी का ये अम्ल एक बड़ा कारण माना गया है। इसके अलावा ये अम्ल लकवा जैसी भयंकर बीमारियां पैदा करता है।
– चाय-काफी में ऑक्सेलिक अम्ल होता है जो शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है।
: एक शोध में पाया गया है कि ज्यादा चाय कॉफी पीने वालों में नपुंसकता आने का खतरा तेज होता है। इसका कारण है इनमें पाया जाने वाला स्टिनॉयल। ये रक्तविहार तथा नपुंसकता पैदा करता है।

चाय की खेती कब, कहां और कैसे आरंभ हुई।

सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अंग्रेज यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय कबाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया।
इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए। ……..कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में, कुछ सूखी पत्तियां आकर गिरीं जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफर। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया।”

दार्जिलिंग की चाय विश्‍वप्रसिद्व क्‍यों है :

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दक्षिण-पूर्व एशिया की उपजाऊ दोमट मिट्टी वाली पहाड़ियों पर, जहा पर्याप्त पानी बरसता है और ठंडी हवा बहती है, इस सदाबहार पौधे की विभिन्न प्रजातियां स्वाभाविक रूप से पनपती हैं। सब से पहले चाय के पौधे के बीज को नर्सरी में उगाया जाता है। इन बीजों से उत्पन्न पौधे जब 6 से 18 माह के बीच की उम्र प्राप्त कर लेते हैं तो इन्हें चाय के बाग़ानों में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
समय-समय पर इन की छंटाई की जाती है जिस से इन की ऊंचाई लगभग एक मीटर तक बनी रहे और इन में नई-नई पत्तियां आती रहें। कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर उगने वाले पौधों की पत्तियां लगभग ढाई साल में ही परिपक्व हो जाती हैं तो ऊंची पहाड़ियों पर उगने वाली प्रजाति की पत्तियां लगभग पांच साल में परिपक्व होती हैं। सब से अच्छी चाय उन पौधों से पाप्त होती है जो 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर उगती हैं। ठंडी हवा में पनपने वाले इन पौधों की बाढ़ धीमी तो होती है परंतु इन से प्राप्त चाय का ज़ायक़ा बेहतर होता है। दार्जिलिंग की चाय संभवत: इसीलिए विश्व-प्रसिद्ध है।”

‘चाय’ और ‘Tea’ शब्‍द कहां से आए:

“अधिकांश मुख्य भूमि चीन (और जापान में भी) में चाय के लिए शब्द ‘चा’ है। (इसलिए जापानी चाय के नामों में इसकी आवृत्ति: सेन्चा, होजिचा, आदि) लेकिन फ़ुज़ियान प्रांत में चाय के लिए शब्द ‘ते’ है (उच्चारण लगभग ‘ताई’)। भाग्य के रूप में, पश्चिम में चाय के पहले बड़े पैमाने पर विपणक डच थे, जिनके संपर्क फ़ुज़ियान में थे। उन्होंने इस नाम को अपनाया, और इसे अधिकांश अन्य यूरोपीय देशों को सौंप दिया। दो अपवाद रूस और पुर्तगाल हैं, जिनके चीन के साथ स्वतंत्र व्यापार संबंध थे। पुर्तगाली इसे ‘चा’ कहते हैं, रूसी ‘चाय’। अन्य क्षेत्रों (जैसे तुर्की, दक्षिण एशिया और अरब देशों) में ‘चाय’ या ‘शाई’ के कुछ संस्करण हैं।
जब शब्द पहली बार अंग्रेजी में प्रवेश किया था, तब ‘ताई’ उच्चारण था, और यह अभी भी स्कॉटलैंड और आयरलैंड में है। अज्ञात कारणों से, अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में किसी समय अंग्रेजी ने अपने उच्चारण को ‘टी’ में बदल दिया। वस्तुतः हर दूसरी यूरोपीय भाषा में ‘ताई’ के मूल उच्चारण को बरकरार रखा जाता है।

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